मुझे रोटी दो। मैं तुम्हारे घर की घंटी नही बजा सकता। मेरी भाषा तुम समझ नही पाते। जब मैं बहुत भूखा होता हूँ तब अपनी भूख बताने के लिए
एक खास तरह से आवाज निकालता हूँ। लेकिन इसे मेरा स्वाभाव समझ कर तुम अनदेखा कर देते हो और मैं भूखा प्यासा भटकता रहता हूँ।
तुम लोग सब्जी और फलों के छिलके कूड़े में न डालकर अपने घरों के बाहर चबूतरे पर एक कोने में रख देते हो, गाय और आवारा घूमते सांडों के लिये। मैं तुम्हारी सदाशयता समझता हूँ। यदि तुम्हारे पास प्रेम नहीं होता तो तुम विशिष्ट अवसरों पर गौ-ग्रास नहीं निकालते। तुम्हारे कुछ भाई-बन्धु तो प्रतिदिन सुबह शाम गाय के लिए रोटी निकालते हैं और अपने हाथों से खिलाते हैं। कुछ लोग तो सम्मानपूर्वक गाय को रोटी खिलाकर उसकी पीठ, गरदन सब सहलाते हैं।
मैं तुमसे इतने सम्मान की उम्मीद तो नहीं करता लेकिन पेट की भूख और प्यार की भूख तो सभी को होती है। कभी एक टुकड़ा रोटी मुझे भी दे दिया करो।
मैं घास नहीं खा सकता। चबूतरों पर रखे सब्जी, फलों के छिलके भी नही खा सकता। मुख्यतः दूध और रोटी ही मेरा आहार है। इस महँगाई में जब दूध तुम्हारे ही बच्चों को नसीब नहीं है तो मैं अपने लिए क्या उम्मीद करूँ। लेकिन एक-एक टुकड़ा रोटी भी यदि मुझे प्रत्येक घर से मिल जाए तो मेरा छोटा सा पेट भर जाएगा।
कुछ ख़ास मौकों पर जब तुम्हारे घर में कोई ख़ुशी का अवसर आता है तो मिठाई, पकवान बनते हैं। मुझे सिर्फ उनकी सुगंध से काम चलाना पड़ता है। यदि ऐसे अवसरों पर तुम एक छोटा चम्मच खीर या हलवा रोटी के टुकड़े पर रख कर दे दो तो मेरी आत्मा तक तृप्त हो जायेगी और मैं भी तुम्हारी खुशियों से खुद को जुड़ा पाऊँगा।
हम सड़क के कुत्तों को कोई भी प्यार से नहीं सहलाता बल्कि मारना अपना अधिकार समझता है। हमारी कुछ पीढ़ियों पहले तक कभी-कभी ये जरुर होता था कि कुछ शरारती बच्चे हमारे नन्हे-नन्हे बच्चों से खेलने की चेष्टा में उन्हें चोट पहुँचा देते थे लेकिन जैसे ही किसी वयस्क की दृष्टि पड़ती थी, शरारती बच्चों को डांटकर भगा दिया जाता था तथा गाभिन या सद्यः प्रसूता कुतिया और उसके नन्हे बच्चों के लिए प्रत्येक घर से एक पुराने कटोरे में दूध भेजने की होड़ सी लग जाती थी।
परन्तु अब तो वयस्क ही हमारी पीठ पर जोर से पद प्रहार करते हैं। अगर मैं तुम्हारी भाषा में बोल सकता तो अवश्य पूछता, “ मुझे क्यों मारा ? आखिर मेरा क्या दोष था ? ”
किसी को अपनी पीड़ा कैसे समझाऊँ। कैसे हमारे कई-कई दिन एकदम भूखे-प्यासे निकल जाते हैं। कभी-कभी तो मैं घंटों तुम्हारी चौखट पर पड़ा रहता हूँ सिर्फ इस आस में कि शायद एक रोटी का टुकड़ा मिल जाए लेकिन तुममे से अधिकांश लोग दरवाजा खोलते ही बिना रोटी दिए मुझे भगा देते हो।
अवश्य हमारे कर्म बिगड़े होंगे जो कुत्ते की योनी पायी है। लेकिन तुम अपने कर्म न बिगाड़ो। मनुष्य हो, मनुष्यता का परिचय दो।
एक खास तरह से आवाज निकालता हूँ। लेकिन इसे मेरा स्वाभाव समझ कर तुम अनदेखा कर देते हो और मैं भूखा प्यासा भटकता रहता हूँ।
तुम लोग सब्जी और फलों के छिलके कूड़े में न डालकर अपने घरों के बाहर चबूतरे पर एक कोने में रख देते हो, गाय और आवारा घूमते सांडों के लिये। मैं तुम्हारी सदाशयता समझता हूँ। यदि तुम्हारे पास प्रेम नहीं होता तो तुम विशिष्ट अवसरों पर गौ-ग्रास नहीं निकालते। तुम्हारे कुछ भाई-बन्धु तो प्रतिदिन सुबह शाम गाय के लिए रोटी निकालते हैं और अपने हाथों से खिलाते हैं। कुछ लोग तो सम्मानपूर्वक गाय को रोटी खिलाकर उसकी पीठ, गरदन सब सहलाते हैं।
मैं तुमसे इतने सम्मान की उम्मीद तो नहीं करता लेकिन पेट की भूख और प्यार की भूख तो सभी को होती है। कभी एक टुकड़ा रोटी मुझे भी दे दिया करो।
मैं घास नहीं खा सकता। चबूतरों पर रखे सब्जी, फलों के छिलके भी नही खा सकता। मुख्यतः दूध और रोटी ही मेरा आहार है। इस महँगाई में जब दूध तुम्हारे ही बच्चों को नसीब नहीं है तो मैं अपने लिए क्या उम्मीद करूँ। लेकिन एक-एक टुकड़ा रोटी भी यदि मुझे प्रत्येक घर से मिल जाए तो मेरा छोटा सा पेट भर जाएगा।
कुछ ख़ास मौकों पर जब तुम्हारे घर में कोई ख़ुशी का अवसर आता है तो मिठाई, पकवान बनते हैं। मुझे सिर्फ उनकी सुगंध से काम चलाना पड़ता है। यदि ऐसे अवसरों पर तुम एक छोटा चम्मच खीर या हलवा रोटी के टुकड़े पर रख कर दे दो तो मेरी आत्मा तक तृप्त हो जायेगी और मैं भी तुम्हारी खुशियों से खुद को जुड़ा पाऊँगा।
हम सड़क के कुत्तों को कोई भी प्यार से नहीं सहलाता बल्कि मारना अपना अधिकार समझता है। हमारी कुछ पीढ़ियों पहले तक कभी-कभी ये जरुर होता था कि कुछ शरारती बच्चे हमारे नन्हे-नन्हे बच्चों से खेलने की चेष्टा में उन्हें चोट पहुँचा देते थे लेकिन जैसे ही किसी वयस्क की दृष्टि पड़ती थी, शरारती बच्चों को डांटकर भगा दिया जाता था तथा गाभिन या सद्यः प्रसूता कुतिया और उसके नन्हे बच्चों के लिए प्रत्येक घर से एक पुराने कटोरे में दूध भेजने की होड़ सी लग जाती थी।
परन्तु अब तो वयस्क ही हमारी पीठ पर जोर से पद प्रहार करते हैं। अगर मैं तुम्हारी भाषा में बोल सकता तो अवश्य पूछता, “ मुझे क्यों मारा ? आखिर मेरा क्या दोष था ? ”
किसी को अपनी पीड़ा कैसे समझाऊँ। कैसे हमारे कई-कई दिन एकदम भूखे-प्यासे निकल जाते हैं। कभी-कभी तो मैं घंटों तुम्हारी चौखट पर पड़ा रहता हूँ सिर्फ इस आस में कि शायद एक रोटी का टुकड़ा मिल जाए लेकिन तुममे से अधिकांश लोग दरवाजा खोलते ही बिना रोटी दिए मुझे भगा देते हो।
अवश्य हमारे कर्म बिगड़े होंगे जो कुत्ते की योनी पायी है। लेकिन तुम अपने कर्म न बिगाड़ो। मनुष्य हो, मनुष्यता का परिचय दो।