मेरे पिता जी के एक सहकर्मी थे, कभी-कभार उनका मेरे घर आना जाना होता था। उनके परिवार में चार सदस्य थे - वो खुद, पत्नी व उनके दो बच्चे
( एक छोटा आयु लगभग 5 वर्ष व एक छोटी बेटी आयु लगभग 7-8 वर्ष )। उनकी बेटी और मैं एक ही विद्यालय में एक ही कक्षा में पढ़ते थे। हम अक्सर साथ-साथ विद्यालय जाया करते थे। मैं जब भी उसे देखती वो डरी-सहमी व खामोश रहा करती थी। हम उससे उसकी खामोशी की वजह जानने की कोशिश करते पर वो कभी भी कुछ न कहती। हम कभी-कभार अपनी नोटबुक देने या उसकी लेने उसके घर जाया करते थे, इसी दौरान मुझे उसकी खामोशी की वजह पता चली। उसके पिता बहुत गुस्सैल प्रवृत्ति के थे, उनका अपने बच्चों के प्रति व्यवहार बहुत निर्दयतापूर्ण था।
वो जरा-जरा सी बात पर उनपर हाथ उठा देते थे, उनके सिर को दीवारों पर टकराते थे, उन्हें तख्ते पर से धक्का देकर नीचे गिरा देते थे, उनके हाथ पैरों को रस्सी से बांधकर छड़ी से उनपर अंधाधुंध प्रहार करते थे, वो गुस्से में इतने पागल हो जाते थे कि उन्हें ये दिखाई ही नहीं पड़ता था कि वो कहाँ पर प्रहार कर रहे हैं। उनके हाथ–पैर टूटे, सिर फूटे या आँखें फूटे .......... इसकी कोई परवाह नहीं करते थे। अपनी बड़ी दीदी पर पिता का ये कहर देखकर छोटा भाई तख्ते के नीचे छिपने का प्रयास करता था या फिर घर के किसी कोने में सहमा हुआ दुबकने का प्रयास करता था। उनकी पत्नी जब उसे बचाने के लिए आगे बढ़ती तो वो उन्हें भी मार का भय दिखाकर दूर रहने को कह देते थे। क्या एक पिता अपने बच्चों या पत्नी के प्रति इतना क्रूर, अत्याचारी या फिर इतना निर्दयी हो सकता है ? शायद हाँ ......... या यूँ कहें होता है ............. उसके इस व्यवहार के पीछे हमारे समाज का पितृसत्तात्मक ढांचा है जो उसमें खुद को सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि व सर्वेसर्वा होने का अहंकार जगाता है। शायद यही अहंकार उसे निर्दयी व निरंकुश बनाता है जिसके कारण वो सभी सदस्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करने लगता है, अपनी पत्नी व बच्चों को अपना साम्रराज्य समझने के बजाय अपना दास समझने लगता है, उन्हें हेय व तिरस्कृत भाव से देखने लगता है।
काश वो एक बार ये सोचने का प्रयास करते कि उनके इस व्यवहार व रवैये का उनके घर परिवार के सदस्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
काश वो पिता ये सोचते ......... कि जिस कारण से वे उसे प्रताड़ित कर रहे थे, क्या वास्तव में वो उसका कारण थी ?
क्या उनकी गलती उनकी उम्र व समझ के अनुसार, इतनी बड़ी होती है कि आपको उनके साथ इतनी निर्दयतापूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता पड़ती है ?
उस बच्चे के कोमल मस्तिष्क पर आपके इस बर्ताव का क्या असर होगा, क्या कभी वो खुलकर आपसे अपने मन की बात कह पाएगा ?
क्या उस माँ / पत्नी का हृदय आपकी इस निर्दयता को क्षमा कर पाएगा ?
उस लड़की को आपके द्वारा दी गयी यातनाओं के कारण भविष्य में न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, उसका जिम्मेदार कौन होगा ?
क्योंकि आगे चलकर यही शारीरिक, मानसिक पीड़ा उनमें असंतोष व अवसाद की स्थिति को जन्म देती है जिसके कारण शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होने लगता है। आपके इसी निर्दयतापूर्ण व्यवहार के कारण उनमें क्रोध, ईष्या व बदले की भावना का जन्म होता है जो उन्हें भी वक्त के साथ निर्दयी बना देता है, यहीं से वो पथ भ्रष्ट हो जाते हैं और कभी-कभी तो अकाल मौत को गले भी लगाने को विवश हो जाते हैं।
क्या आप जीवन भर अपने बच्चे की अकाल मौत के कारण पश्चाताप की अग्नि में जलना चाहोगे ? शायद नहीं .......। तो फिर आप अपने बर्ताव व व्यवहार को सरल, संयमित, लचीला, विनम्र व दयालु क्यों नहीं बनाते ?
क्योंकि हृदय तो आप में भी है, करुण भावनाओं का समंदर उनमें भी बहता है फिर ये कठोरता, संवेदनहीनता का आवरण क्यों ?........ कहीं आपकी क्रोधाग्नि का कारण आपके अंदर ही तो नहीं है ? इसका स्वयं आकलन करें..........।
कहते हैं पति–पत्नी एक गाड़ी के दो पहियों की तरह होते हैं और बच्चे उनकी सवारी, जिन्हें दोनों को मिलकर अपने प्यार, दुलार, विश्वास के साथ उन्हें उनके गन्तव्य (लक्ष्य ) तक पहुँचाने की जिम्मेदारी होती है, जिससे कि वो एक श्रेष्ठ व चरित्रवान नागरिक बन सकें और राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
संत अन्नपूर्णा योगी
( एक छोटा आयु लगभग 5 वर्ष व एक छोटी बेटी आयु लगभग 7-8 वर्ष )। उनकी बेटी और मैं एक ही विद्यालय में एक ही कक्षा में पढ़ते थे। हम अक्सर साथ-साथ विद्यालय जाया करते थे। मैं जब भी उसे देखती वो डरी-सहमी व खामोश रहा करती थी। हम उससे उसकी खामोशी की वजह जानने की कोशिश करते पर वो कभी भी कुछ न कहती। हम कभी-कभार अपनी नोटबुक देने या उसकी लेने उसके घर जाया करते थे, इसी दौरान मुझे उसकी खामोशी की वजह पता चली। उसके पिता बहुत गुस्सैल प्रवृत्ति के थे, उनका अपने बच्चों के प्रति व्यवहार बहुत निर्दयतापूर्ण था।
वो जरा-जरा सी बात पर उनपर हाथ उठा देते थे, उनके सिर को दीवारों पर टकराते थे, उन्हें तख्ते पर से धक्का देकर नीचे गिरा देते थे, उनके हाथ पैरों को रस्सी से बांधकर छड़ी से उनपर अंधाधुंध प्रहार करते थे, वो गुस्से में इतने पागल हो जाते थे कि उन्हें ये दिखाई ही नहीं पड़ता था कि वो कहाँ पर प्रहार कर रहे हैं। उनके हाथ–पैर टूटे, सिर फूटे या आँखें फूटे .......... इसकी कोई परवाह नहीं करते थे। अपनी बड़ी दीदी पर पिता का ये कहर देखकर छोटा भाई तख्ते के नीचे छिपने का प्रयास करता था या फिर घर के किसी कोने में सहमा हुआ दुबकने का प्रयास करता था। उनकी पत्नी जब उसे बचाने के लिए आगे बढ़ती तो वो उन्हें भी मार का भय दिखाकर दूर रहने को कह देते थे। क्या एक पिता अपने बच्चों या पत्नी के प्रति इतना क्रूर, अत्याचारी या फिर इतना निर्दयी हो सकता है ? शायद हाँ ......... या यूँ कहें होता है ............. उसके इस व्यवहार के पीछे हमारे समाज का पितृसत्तात्मक ढांचा है जो उसमें खुद को सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि व सर्वेसर्वा होने का अहंकार जगाता है। शायद यही अहंकार उसे निर्दयी व निरंकुश बनाता है जिसके कारण वो सभी सदस्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करने लगता है, अपनी पत्नी व बच्चों को अपना साम्रराज्य समझने के बजाय अपना दास समझने लगता है, उन्हें हेय व तिरस्कृत भाव से देखने लगता है।
काश वो एक बार ये सोचने का प्रयास करते कि उनके इस व्यवहार व रवैये का उनके घर परिवार के सदस्यों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
काश वो पिता ये सोचते ......... कि जिस कारण से वे उसे प्रताड़ित कर रहे थे, क्या वास्तव में वो उसका कारण थी ?
क्या उनकी गलती उनकी उम्र व समझ के अनुसार, इतनी बड़ी होती है कि आपको उनके साथ इतनी निर्दयतापूर्ण व्यवहार करने की आवश्यकता पड़ती है ?
उस बच्चे के कोमल मस्तिष्क पर आपके इस बर्ताव का क्या असर होगा, क्या कभी वो खुलकर आपसे अपने मन की बात कह पाएगा ?
क्या उस माँ / पत्नी का हृदय आपकी इस निर्दयता को क्षमा कर पाएगा ?
उस लड़की को आपके द्वारा दी गयी यातनाओं के कारण भविष्य में न जाने कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, उसका जिम्मेदार कौन होगा ?
क्योंकि आगे चलकर यही शारीरिक, मानसिक पीड़ा उनमें असंतोष व अवसाद की स्थिति को जन्म देती है जिसके कारण शरीर अनेक प्रकार के रोगों से ग्रस्त होने लगता है। आपके इसी निर्दयतापूर्ण व्यवहार के कारण उनमें क्रोध, ईष्या व बदले की भावना का जन्म होता है जो उन्हें भी वक्त के साथ निर्दयी बना देता है, यहीं से वो पथ भ्रष्ट हो जाते हैं और कभी-कभी तो अकाल मौत को गले भी लगाने को विवश हो जाते हैं।
क्या आप जीवन भर अपने बच्चे की अकाल मौत के कारण पश्चाताप की अग्नि में जलना चाहोगे ? शायद नहीं .......। तो फिर आप अपने बर्ताव व व्यवहार को सरल, संयमित, लचीला, विनम्र व दयालु क्यों नहीं बनाते ?
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एक पिता ऐसे भी |
कहते हैं पति–पत्नी एक गाड़ी के दो पहियों की तरह होते हैं और बच्चे उनकी सवारी, जिन्हें दोनों को मिलकर अपने प्यार, दुलार, विश्वास के साथ उन्हें उनके गन्तव्य (लक्ष्य ) तक पहुँचाने की जिम्मेदारी होती है, जिससे कि वो एक श्रेष्ठ व चरित्रवान नागरिक बन सकें और राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।
संत अन्नपूर्णा योगी