Friday, August 5, 2016

संयुक्त परिवार : बचपन और मीठी यादें

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना उसका काम नहीं चल सकता। अवसर चाहे ख़ुशी का हो या दुःख का उसे अपने इर्द-गिर्द लोगो की जरुरत पड़ती
है।

बच्चे के जन्मदिन जैसा छोटा सा ख़ुशी का अवसर हो, नौकरी में प्रोन्नति, घर में नए शिशु का आगमन या परिवार में किसी का विवाह, वो प्रत्येक अवसर पर समाज के लोगों, मित्रों, सम्बन्धियों यहाँ तक की दूर-दराज तक के सम्बन्धियों को भी बुलाता है। वो यह कल्पना भी नहीं कर सकता की वह खुशियाँ उनके बिना कैसे मनाएगा।

इसी प्रकार परिवार के किसी सदस्य की नौकरी चले जाने, किसी के गंभीर रूप से घायल या अस्वस्थ होने, किसी की मृत्यु होने या किसी भी प्रकार के दुःख के अवसर पर उसे सांत्वना और सहारे की जरुरत पड़ती है और सांत्वना और सहारे के लिए समाज के लोग दौड़ पड़ते हैं।
लेकिन समाज, मित्र और दूसरे सम्बन्धियों से पहले परिवार के सदस्य होते हैं और हमेशा से होते आये हैं।

लेकिन आज एकल परिवारों के चलन से परिवार के सदस्यों की संख्या इतनी कम रह गयी है की ऐसे किसी भी अवसर पर व्यक्ति अपने को अकेला, असहाय पाता है।

बेशक समाज का महत्व बहुत ज्यादा है लेकिन संयुक्त परिवार का महत्व उससे भी ज्यादा और उससे भी पहले है।

संयुक्त परिवार के बहुत से लाभ होने पर भी कुछ समस्याएं और कुछ परेशानियां भी होती हैं। फिर भी लाभ के सम्मुख परेशानियां एकदम ही नगण्य है।

सिर्फ अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए संयुक्त परिवार टूटते गए। लोगों ने एकल परिवार को स्वार्थ वश अपना तो लिया लेकिन बाद में एकल परिवार में भी क्रमशः सब एकल ही होते चले गए। पति पत्नी से और पत्नी पति से भी आतंरिक रूप से उस प्रकार से जुड़ी नहीं रह गयी। इसके बाद उनके बच्चे भी अपने और सिर्फ अपने बारे में सोचने वाले हो गए।

ये प्रकृति का नियम है कि यदि कोई चीज टूटती है तो अंत तक टूटती ही चली जाती है। इसीलिए संयुक्त परिवार के विघटन से बने एकल परिवार के सदस्य भी भावनात्मक रूप से एकाकी और सिर्फ अपने लिए जीने वाले हो गए।

अतः आज आवश्यकता है कि पुनः संयुक्त परिवार के महत्व को समझा जाए और छोटे-छोटे स्वार्थों से ऊपर उठकर या साथ रहने में होने वाली असुविधाओं से ऊपर उठकर पुनः समाज में संयुक्त परिवारों की स्थापना की जाए।

आप अपने बच्चे को चाहे जितने खिलौने दिला दें, परन्तु दादा-दादी की कहानियों का स्थान खिलौने कभी नहीं ले पाएंगे।

आप अपने बच्चों को छुट्टियों में भले ही लाखों रुपये खर्च करके हिल स्टेशन या दूसरे मनोरम स्थानों पर घुमाने ले जाएँ लेकिन उन्ही छुट्टियों में बच्चों की बुआ का सपरिवार आप के घर आना और एक साथ चाचा, ताऊ, बुआ और मौसी, मां के बच्चों का इकठ्ठा होना उन्हें जो ख़ुशी देता है और वो मीठी यादें उनके पास आजीवन रहती हैं इन खुशियों की किसी बात से तुलना नहीं हो सकती। परन्तु ये तभी हो सकता है जबकि आपका बच्चा पहले से ही संयुक्त परिवार में रहता हो और उसे मिल बाँट कर खाने और रहने की आदत हो।

अन्यथा जन्म से ही एकल परिवार में रहने वाला बच्चा अकस्मात् आये बुआ और मौसी के परिवार को बर्दाश्त ही नहीं कर पायेगा। क्योंकि किसी भी वस्तु को बांटने या देने की उसकी आदत ही नहीं होगी और वो आये हुए रिश्तेदारों से चिढ़ेगा और अंत में वो आपकी वृद्धावस्था में आपसे भी भागेगा। ढेर सारे वृद्धाश्रम इसके प्रमाण हैं।